Monday, 19 June 2017

उन्नति के पथ पर

केवल ख्याति पाना ही तो उन्नति नहीं है। ख्याति तो चोर, डाकू, बदमाश आदि भी प्राप्त कर लेते हैं। ऐसी उन्नति से मनुष्यता को लाभ नहीं है। सात्विक तथा शुद्ध उन्नति ही संसार का भला कर सकती है। शुद्ध तथा दृढ़ संकल्प ही ऐसी उन्नति की पहली सीढ़ी है। और फिर उन्नति सभी के हृदयों में अंकुर रूप से विद्यमान है। सुविचारों और सुसंगति के पानी से यह अंकुर विशाल वृक्ष में परिणत हो जाता है। यह तो एक महोदधि है। मनुष्य कई बार असफल प्रयत्न होने पर भी साहस नहीं तोड़ते, वे ही मनुष्य रत्न अमूल्य रत्न ले आते हैं। उन्नति करते हुए यह ध्यान रहे कि उन्नति किसी को खोजती नहीं परन्तु वह खोजी जाती है। इसके लिये देखिये की आप से उन्नत कौन है। उनके संघ में रहिये और उन्नत होने का प्रयत्न करते रहिए।

🔴 कोई बुरा कार्य न करो। सोचो कि इस कार्य के लिये मनुष्य क्या कहेंगे। बुरे कार्य के कारण अपमानित होने का डर ही उन्नति का श्रीगणेश है। उन्नति करती है तो अपने आपको अनन्त समझो और निश्चय करो कि मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ। परन्तु अपनी समझ और अपने निश्चय को यथार्थ बनाने के लिये कटिबद्ध हो जाओ। अपने अनंत विचारों को शब्दों की अपेक्षा कार्य रूप में प्रगट करो। प्रयत्न करते हुए अपने आपको भूल जाओ। जब तुम अनन्त होने लगो तो अपने आपको महाशक्ति का अंश मान कर गौरव का अनुभव करो, परन्तु शरीर, बुद्धि और धन के अभिमान में चूर न हो जाओ। यदि उन्नति के कारण आपको अभिमान हो गया तो मध्याह्न के सूर्य की भाँति आपका पतन अवश्यंभावी है।

🔵 जब आप उन्नति पथ पर अग्रसर हैं तो भूल जायें कि आप कभी नीच, तथा दुष्ट-बुद्धि और पतित थे। निश्चित करो कि मेरा जन्म ही उन्नति के लिये हुआ है और ध्येय की प्राप्ति में सुध-बुध खो दो। और जब भी आपमें हीन विचार आये तो सोचो कि-जब वेश्या पतिव्रता हो गई तो उसे वेश्या कहना पाप है। दुष्ट जब भगवत् शरण हो गया, तो वह दुष्ट कहाँ रहा? जब लोहा पारस से छू गया तो उसमें लोहे के परमाणु भी तो नहीं रहे। इसी तरह जब मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ तो अवनति हो ही कैसे सकती है



👉 अप्रत्याशित सफलताओं का आधार प्रचंड मनोबल!!

🔵 एक बार की बात है गौतम बुद्ध अपने भिक्षुओं के साथ विहार करते हुए शाल्यवन में एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्म चर्चा शुरू हुयी और उसी क्रम में एक भिक्षु ने उनसे प्रश्न किया - "भगवन्! कई लोग दुर्बल और साधनहीन होते हुए भी कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी मात देते हुए बड़े-बड़े कार्य कर जाते हैं, जबकि अच्छी स्थिति वाले साधन सम्पन्न लोग भी उन कार्यों को करने में असफल रहते हैं। इसका क्या कारण हैं? क्या पूर्वजन्मों के कर्म अवरोध बन कर खड़े हो जाते हैं?"

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