याद
रखो-मान-अपमान ‘रूप’ का या ‘शरीर’ का होता है और स्तुति-निंदा नाम की होती
है; और ये रूप तथा नाम दोनों ही तुम्हारे स्वरुप नहीं है । देह का निर्माण
माता के उदर में गर्भकाल में होता है और नाम जन्म के बाद रखा जाता है ।
नाम बदले भी जाते हैं । अतएव ये रूप और नाम आत्मा के नहीं है । तुम आत्मा
हो; इस देहके निर्माण के पहले भी आत्मारूप में तुम थे, देहावसान के बाद भी
तुम रहोगे । आत्मा का मान-अपमान और स्तुति-निंदा कोई कर नहीं सकता । अतएव
मान-अपमान तथा स्तुति-निंदा से तुम न हर्षित होओ, न उद्विग्न । दोनों को
समान समझकर उन्हें ग्रहण मत करो ।
याद
रखो -सत्कार-मान और बडाई-स्तुति जितने प्रिय लगते हैं, उतने ही
असत्कार-अपमान और निंदा-गाली अप्रिय लगते हैं और उसी के अनुसार राग द्वेष
होता है । राग-द्वेष का परिणाम है – आध्यात्मिक दैवी सम्पदा का नाश और
भौतिक आसुरी सम्पदा का विकास । जहां आसुरी संपदा का सृजन होने लगता है,
वहाँ भाँती-भाँती के पाप, दुष्कर्म, दुःख, क्लेश, संताप आदि का होना-बढ़ना
अनिवार्य होता है । यों मानव जीवन दुखों तथा नरकों का अमोघ साधन बन जाता है
। तुम जरा ध्यान देकर सोचोगे तो यह प्रत्यक्ष दिखलाई देगा की तुम न देह
हो, न नाम हो और यहाँ के मान-अपमान तथा स्तुति-निंदा ही नहीं, लाभ-हानि,
जय-पराजय, शुभ-अशुभ, सुख-दुःख, मित्र-शत्रु, जीवन-मृत्यु आदि द्वंद्व केवल
देह-नाम या नाम-रूप से ही सम्बन्ध रखते हैं । तुम इनको भगवान की माया मान
लो या उनका लीलामय स्वरुप मान लो बस, तुम इनके ऊपर उठ जाओगे
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