मूर्खो न हि ददाति अर्थं नरो दारिद्रयशङ्कया |
प्राज्ञाम्प;: तु वितरति अर्थं नरो दारिद्रयशङ्कया || – भोजप्रबंध
अर्थ : कहीं दरिद्र न हो जाए, इस डरसे मूर्ख दान नहीं देता; परंतु बुद्धिमान व्यक्ति भविष्यमें दरिद्रता आनेपर दान नहीं दे पाएगा, यह सोचकर अभी ही देता रहता है ।
भावार्थ : मूढ आसक्त होनेके कारण दान नहीं करता है और बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य हेतु सत्कर्मोंको टालता नहीं है वह वर्तमानमें ही सत्कर्मोंको करनेमें विश्वास रखता है क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि भविष्य अनिश्चित है | वैसे भी मृत्यु अनिश्चित होती है और मृत्योपरांत सत्कर्म ही हमारे साथ जाता है अतः सत्कर्मके विषयमें जैसे ही ज्ञात हो उसे आचरणमें लाना चाहिए |
******
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा
विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः ।
विशेषतः सर्वविदां समाजे
विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥ – भर्तृहरेः सुभाषितसंग्रह–६८
अर्थ : ब्रह्माने सभीके लिए उपलब्ध एक गुण निर्माण किया है और वह है मौन | अज्ञान छिपानेके लिए मौन रूपी एक गुण रूपी आवरण बनाया है; विशेष कर ज्ञानियोंकी सभामें मूर्खोके लिए मौन अलंकार समान है ।
भावार्थ : मौन मात्र मूढों हेतु ही नहीं अपितु ज्ञानियोंके लिए गुण है | एक वाक्य बोलनेमें हमारी दो प्रतिशत शक्ति व्यय हो जाती है, इससे समझमें आता है कि वाचालताके कारण हम अपनी कितनी शक्तिका अपव्यय करते हैं | जहां आवश्यक हो और जितना आवश्यक हो उतना ही बोलना चाहिए | और जहां हमसे अधिक ज्ञानी हों वहां तो मौन धरण करनेसे हमारी सुननेकी और सीखनेकी वृत्ति दोनों ही निर्मित होती है | व्यावहारिक जीवनमें भी एक संताप हमारे जिह्वापर नियंत्रणके कारण होता है अतः मौनसे सभी परिस्थितिमें, सभीको लाभ मिलता है |
प्राज्ञाम्प;: तु वितरति अर्थं नरो दारिद्रयशङ्कया || – भोजप्रबंध
अर्थ : कहीं दरिद्र न हो जाए, इस डरसे मूर्ख दान नहीं देता; परंतु बुद्धिमान व्यक्ति भविष्यमें दरिद्रता आनेपर दान नहीं दे पाएगा, यह सोचकर अभी ही देता रहता है ।
भावार्थ : मूढ आसक्त होनेके कारण दान नहीं करता है और बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य हेतु सत्कर्मोंको टालता नहीं है वह वर्तमानमें ही सत्कर्मोंको करनेमें विश्वास रखता है क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि भविष्य अनिश्चित है | वैसे भी मृत्यु अनिश्चित होती है और मृत्योपरांत सत्कर्म ही हमारे साथ जाता है अतः सत्कर्मके विषयमें जैसे ही ज्ञात हो उसे आचरणमें लाना चाहिए |
******
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा
विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः ।
विशेषतः सर्वविदां समाजे
विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥ – भर्तृहरेः सुभाषितसंग्रह–६८
अर्थ : ब्रह्माने सभीके लिए उपलब्ध एक गुण निर्माण किया है और वह है मौन | अज्ञान छिपानेके लिए मौन रूपी एक गुण रूपी आवरण बनाया है; विशेष कर ज्ञानियोंकी सभामें मूर्खोके लिए मौन अलंकार समान है ।
भावार्थ : मौन मात्र मूढों हेतु ही नहीं अपितु ज्ञानियोंके लिए गुण है | एक वाक्य बोलनेमें हमारी दो प्रतिशत शक्ति व्यय हो जाती है, इससे समझमें आता है कि वाचालताके कारण हम अपनी कितनी शक्तिका अपव्यय करते हैं | जहां आवश्यक हो और जितना आवश्यक हो उतना ही बोलना चाहिए | और जहां हमसे अधिक ज्ञानी हों वहां तो मौन धरण करनेसे हमारी सुननेकी और सीखनेकी वृत्ति दोनों ही निर्मित होती है | व्यावहारिक जीवनमें भी एक संताप हमारे जिह्वापर नियंत्रणके कारण होता है अतः मौनसे सभी परिस्थितिमें, सभीको लाभ मिलता है |
No comments:
Post a Comment