Thursday, 7 July 2016

आदमी की औकात

एक माचिस की तिल्ली,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है  आदमी की औकात !!!!
एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया ,
अपनी सारी ज़िन्दगी , परिवार के नाम कर गया।
कहीं रोने की सुगबुगाहट  , तो कहीं फुसफुसाहट ,
....अरे जल्दी ले जाओ कौन रोयेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है  *आदमी की औकात!!!!*
मरने के बाद नीचे देखा ,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ  ज़बरदस्ती
रो रहे थे।
नहीं रहा.. ........चला गया..........
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है  *आदमी की औकात!!!!!*
बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा ,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी ......
अखबार में  अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे , जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है  *आदमी की औकात !!!!!!*
जिन्दगी भर , मेरा- मेरा- मेरा  किया....
अपने लिए कम , अपनों के लिए ज्यादा जीया ...
कोई न देगा साथ...जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका  ले जाने की भी है हमारी औकात   ???
*हम चिंतन करें .........*
*क्या है हमारी औकात ???*

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