Saturday, 1 April 2017

भगवान से मिलना ही नहीं चाहते

जो लोग सोचते हैं कि भगवान नहीं मिल सकते,वो वास्तव भगवान से मिलना ही नहीं चाहते।
जो लोग भगवान के मिलने को कठिन मानते है ,वो ऐसे हैं जो कि भगवान से मिलने का ईमानदारी से प्रयास ही नहीं करते या सही मार्ग खौजना ही नहीं चाहते।जो लोग श्रद्धा और विश्वास के कारण भगवान का मिलना दृणता से सरल मान लेते हैं वही भगवान उनके सबसे करीब रहते हैं।
जितने लोग उतनी मानसिकताएँ।प्राकृत परिस्थिति की बात की जाए तो एक ही परिस्थिति का असर सब पर अलग-अलग होता है जैसे अप्रेल में पानी गिरता है तो कुछ को तो गर्मी से राहत मिलती है और वही पानी किसानों को बुरा लगता है क्योकि ये उनकी फसल खराब करता है।यही पानी दो माह पहले गिरे तो इसके विपरीत होता है।मतलब कुछ लोगो को ठंड की बजह से बुरा लगेगा और किसानो के खेत में पानी हो जाएगा तो किसानों को अच्छा लगेगा।अब मानसिक परिस्थिति की बात करते हैं तो मान लो मंदिर निर्माण कार्य में कई मजदूर लगे हैं।अब उनकी कार्य करते समय की मानसिकताएं देखें तो
1. पहला सोचता है कम काम करना पडे और पैंसे मिल जाँए ,
2.दूसरा सोचता है कब काम खतम हो और कब कलारी जाँए,
3.तीसरा सोचता है कुछ घंटे और काम मिल जाए जिससे घर खर्च अच्छे से चल सके।
4.चौथा सोचता है जिंदगी निकल गई सेठो के काम करते-करते अब मंदिर का काम मिल गया तो सुकूंन है।
5.पाँचवा सोचता है ,पैसे मिलें या न मिलें मंदिर का काम है ये बडे भाग्य का काम है।
यहाँ सब मजदूरों के घरों की परिस्थिति लगभग एक सी ही है पर मानसिकता सबकी अलग-अलग है।कोई प्रसन्न तो कोई खिन्न।
अब पारमार्थिक स्थिति की बात करें,तो भगवान को मूर्ती अकेली में मानेगे तो वो बाहर कैंसे आ सकते हैं ।जो लोग भगवान को सब जगह मानते हैं उनके लिए भगवान किसी न किसी रूप में साथ रहते ही हैं।समय आने पर या भक्त का भाव अधिक बडने पर तुरंत प्रकट हो जाते हैं।अतः भक्ति भाव से प्रभु का नामस्मरण करें।
"राम"

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