ॐ ब्रह्मामुरारित्रिपुरांतकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
ॐ
! हे ब्रह्मा, मुरारी (विष्णु), त्रिपुरांतकारी (शिव), सूर्य, शशि, मंगल
(भूमिपुत्र), बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू एवं केतू आप सब मेरे प्रातःकालको
मंगलकारी करें !
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शास्त्र वचन
१. सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा |
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा: ||
अर्थ
: सत्य मेरी माता है, ज्ञान मेरे पिता हैं, धर्म मेरे भ्राता हैं और दया
मेरा सखा हैं | शांति मेरी पत्नी है और क्षमा मेरा पुत्र है, यह छह मेरे
बांधव (संबंधी) हैं |
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२. यद्यद्ददाति विधिवत्ससम्यक् श्रद्धासमन्वितः ।
तत्तत्पितृणां भवति परत्रानन्तमक्षयं ॥ – मनुस्मृति (३: २७७)
अर्थ
: ब्राह्मणको श्रद्धासहित तथा विधि अनुसार जो भी कुछ पितरोंके लिए दिया
जाता है, उससे परलोकमें अंतमें न होनेवाली तथा सदा रहनेवाली तृप्ति प्राप्त
होती है ।
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३. शत्रु: मित्रमुदासीनो भेदाः सर्वे मनोगताः ।
एकात्मत्वे कथं भेद: सम्भवेद द्वैतदर्शनात ॥
अर्थ
: शत्रुता, मित्रता या उदासीनताके सभी भेदभाव मनमें ही रहते हैं ।
एकात्मभाव होनेपर भेदभाव नहीं रहता और वह द्वैतभावसे ही उत्पन्न होता है ।
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४. सर्वतो मनसोsसङ्गमादो संगं च साधुषु |
दयां मैत्रीं प्रश्रयं च भुतेष्वद्धा यथोचितं ||
अर्थ:
पहले शरीर, संतान आदिमें मनकी अनासक्ति सीखें | तत्पश्चात् भगवानके
भक्तोंसे प्रेम कैसा करना चाहिए, यह सीखें | इसके पश्चात् प्राणियोंके
प्रति यथायोग्य दया, मैत्री और विनयकी निष्कपट भावसे शिक्षा ग्रहण करें |
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५.
इन्द्रियाणां विचरतां विषयेस्वपहारिषु | संयमे
यत्नमातिष्ठेव्दिव्दान्यन्तेव वाजिनाम् || - मनुस्मृति अर्थ: एक कुशल सारथी
जिस प्रकार अपने घोडोंपर नियंत्रण रखनेके लिए सदैव चेष्टा करता रहता है,
उसी प्रकार विद्वान व्यक्तिको भी चित्तको आकर्षित करनेवाले विषयोंमें भ्रमण
करनेवाली इन्द्रियोंको वशमें रखनेका प्रयत्न करना चाहिए |
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