आपको
अपने जैसा व्यक्ति कदापि प्राप्त न होगा! आपको जीवन- पथ पर अकेले ही
अग्रसर होना पड़ेगा। कोई आपके साथ दूर तक न चल सकेगा। अकेले चले चलिये।
जीवन
को एक यात्रा मानिए। यात्रा में एक दो अल्पकालीन संगी साथी आपको प्राप्त
हो गए हैं। इनसे चार दिन के लिए आप बोलते हैं ,बरतते हैं, हँसी ठट्ठा,
संघर्ष छीना झपटी चलती है। साथ साथ कुछ समय तक आगे बढ़ते हैं, किन्तु
धीरे-धीरे उनकी जीवन-यात्रा समाप्त होती चलती है। एक के पश्चात दूसरा अपने
गन्तव्य स्थान पर, रुक कर आपको छोड़ते चलते हैं। आपके साथ अभी छः सात
व्यक्तियों का परिवार साथ था। सात में से छः रह जाते हैं और फिर क्रमशः आप
अकेले ही रह जाते हैं। “अरे, मैं अकेला रह गया, बिलकुल अकेला”- आपका मन कुछ
काल के लिए अशान्त सा हो उठता है। उसमें एक कड़वाहट सी आ जाती है। पर
वास्तव में जीवन का यह अकेलापन ही मानव-जीवन का चरम सत्य है।
सबको
पाकर भी हम सब अकेले हैं, नितान्त अकेले! हमारे साथ कोई भी दूर तक चलने
वाला नहीं है। जिन्हें हम भ्रम से माया वश अपने साथ चलता हुआ समझते हैं,
वास्तव में वे हमारे अल्पकालीन सहयात्री मात्र हैं। हमारे अकेलेपन में कोई
भी हाथ बंटाने, दिलासा देने वाला नहीं है।
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