एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था, उसके पास बहुत पैसा था और उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था। एक बार किसी कारण से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गये।आँखों में बुरी तरह जलन होती थी । वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया। सेठ के पास बहुत पैसा था । उसने देश विदेश से बहुत सारे नीम- हकीम और डॉक्टर बुलाए।एक बड़े डॉक्टर ने बताया की उनकी आँखों में एलर्जी है। उन्हें कुछ दिनों तक सिर्फ़ हरा रंग ही देखना होगा और कोई और रंग देखेंगे तो ( आँखों ) की परेशानी बढेगी।
अब क्या था, सेठ ने बड़े बड़े पेंटरों को बुलाया और पूरे महल को हरे रंग से रंगने का आदेश दिया। वह बोला- मुझे हरे रंग के अलावा कोई और रंग नहीं दिखना चाहिए । मैं जहाँ से भी गुजरूँ, हर जगह हरा रंग ही दिखे । इसके लिए पूरे शहर को हरे रंग से रंग दो । पेंटरों ने कार्य शुरू कर दिया ।
इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन फिर भी सेठ की नज़र किसी दूसरे रंग पर पड़ ही जाता था , क्योंकि पूरे नगर को हरे रंग से रंगना संभव नहीं हो पा रहा था । सेठ दिन प्रतिदिन पेंट कराने के लिए पैसा खर्च करता जा रहा था।
एक दिन उस शहर से एक महात्मा पुरुष गुजर रहा थे । उसने चारों तरफ हरे रंग देखकर लोगों से कारण पूछा।
सारी बात सुनकर वे सेठ के पास गये और बोले -- सेठ जी आपको इतना पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है । मेरे पास आपकी परेशानी का एक छोटा सा हल है । आप हरा चश्मा खरीद लें । फिर आपको हर जगह सब कुछ हरा ही दिखेगा ।
सेठ की आँखे खुली की खुली रह गयी । उसके दिमाग़ में यह शानदार विचार आया ही नहीं था । वह बेकार में इतना पैसा खर्च किये जा रहा था।फिर उसने ऐसा ही किया ।
ऐसे ही जीवन में हमारी सोंच और देखने के नजरिये पर भी बहुत सारी चीज़ें निर्भर करतीं हैं । कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है लेकिन हम परेशानी में फँसे रहते हैं।इसके लिए हमें सकारात्मक सोच का व्यक्ति होना/बनना चाहिए । इसे कहते हैं सोच का फ़र्क।
जय श्रीकृष्ण
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