लीज पर मिली है ये जिन्दगी;
रजिस्ट्री के चक्कर में ना पड़े..
अनावश्यक वस्तुओं का क्या करूँ......बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख जरूर पढे!
बल्लभाचार्य
के समय में अनेक वैष्णव भक्त हुए पर उनमें कुंभनदास का नाम आज भी बडी़
श्रद्धा से लिया जाता है। यद्यपि वह परिवार में रहते थे पर परिवार उनमें
नहीं। कषि कार्य करने के बाद भी वह इतना समय बचा लेते थे कि जिसमें भक्ति
के अनेक सुंदर-सुंदर गीतों की रचना कर सकें।
जब
वे अपने भक्ति-रस से पूर्ण गीतों को मधुर कंठ से गाते थे तो राह चलते लोग
खड़े होकर सुनने लगते थे। भगवान् के भक्त निर्धनता को वरदान समझते हैं। उनका
विश्वास है कि अभाव का जीवन जीने वाले भक्तों की ईश्वर को याद सदैव आती
रहती है।
हाँ कुंभनदास भी
भौतिक संपदाओं से वंचित थे। वह इतने निर्धन थे कि मुख देखने के लिए एक
दर्पण तक न खरीद सकते थे। स्नान के बाद जब कभी चंदन लगाने की आवश्यकता होती
तो किसी पात्र में जल भरकर अपना चेहरा देखते थे।
जल
से भरे पात्र को सामने रखे कुंभनदास तिलक लगा रहे थे कि महाराजा मानसिंह
उनके दर्शन हेतु पधार गये। महाराजा ने आकर अभिवादन में 'जय श्रीकृष्ण'
कहा-उत्तर में भक्त ने भी उन्हें पास बैठने का संकेत देते हुए 'जय श्री
कृष्ण' कहा। पर जल्दी में उस पात्र का जल फैल गया। अतः कुंभनदास ने अपनी
पुत्री से पुनः जल भरकर लाने को कहा। राजा को वस्तु स्थिति समझते देर न
लगी। उन्हें यह जानकर बडा दुःख हुआ कि भगवान् का भक्त एक छोटी-सी वस्तु
दर्पण के अभाव में कैसा कष्ट उठा रहा है ? राजा मानसिंह ने अपने महल में एक
सेवक भेजकर स्वर्णजटित दर्पण मँगवाया और भक्त के चरणों मे अर्पित कर क्षमा
माँगी।
कुंभनदास बोले-'राजन्! हम जैसे निर्धन व्यक्ति के घर में इतनी मूल्यवान वस्तु क्या शोभा दे सकती है ?
मेरी
तरफ से यह तुच्छ भेंट तो आपको स्वीकार ही करनी पडेगी। आपको जिन-जिन
वस्तुओं की आवश्यकता हो उनकी सूची दे दीजिए। घर जाकर मैं आपकी सुख-सुविधा
का पूर्ण ध्यान रखकर समस्त वस्तुओं की व्यवस्था करवा दूँगा। राजा मानसिंह
ने आग्रह के स्वर में अपनी बात कही।
'राजन्
निश्चिंत रहिए और अपनी जनता के प्रति उदार तथा कर्तव्य की भावना बनाए
रखिए। मुझे किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं, भगवान् की कृपा से सब प्रकार
आनंद है। आप देखते नहीं भगवान का नाम स्मरण हेतु माला, आचमन और पूजन के लिए
पंचपात्र बैठने के लिए आसन आदि सभी उपयोगी वस्तुऐं तो हैं। कृपया आप यह
दर्पण वापिस ले जाइए। जिस दिन भक्त भी इसी प्रकार का भोग विलासमय जीवन
व्यतीत करने लगेंगे उन दिन उनकी भक्ति समाप्त हो जायेगी।
नारायण नारायण
लक्ष्मीनारायण भगवान की जय
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