Friday 18 December 2015

संसार में अभी भी जो थोडे बहुत सद्संत बचे हुए हैं

संसार में अभी भी जो थोडे बहुत सद्संत बचे हुए हैं , जिनके कि जीवन का उद्देश्य व आधार चेले - चेली न होकर परमात्मा हैं , जो कि सच में लक्ष्मी के न होकर लक्ष्मीपति के शरणागत हैं , वे संत अपने जीवन के कल्यान के उपाय कर लेने के बाद में , जो भी समय बचता है , उसमें वे संसारी जीवों के कल्याणार्थ काम करते हैं , करें भी क्यों नहीं , क्योंकि कहा भी जाता है कि - - - - - - - - -
" सन्त हृदय नवनीत समाना "
जब वे संसारी जीवों को परेशान व दुखी देखते हैं तो , वे अपने - आप को रोक नहीं पाते , और अपने प्रवचनों में अपने आप को ज्ञानवान व वेदांती होने का आभास कराने के वजाय , गीता जो कि विरक्त व बैरागियों का ग्रंथ है , की शिक्षा न दे कर ऐसी आसान युक्तियाँ बतलाते हैं , जिन पर कि वे ग्रहस्थ आसानी से अमल कर सकें , ऐसे ही एक सच्चे सन्त जब प्रवचन कर रहे थे तो , वे कह रहे थे कि , आप लोग ग्रहस्थ हैं , आपके ऊपर परिवार की जिम्मेदारीयाँ हैं , सत्संग जब कर सको तब कर लेना , नहीं कर सको तो भी चलेगा , लेकिन कुसंग को तो आज से और अभी से छोड दो । ये कुसंगी लोग अपना जीवन तो बर्बाद कर ही चुके हैं , आपका भी अपनी जेब का पैसा व समय खर्च करके बर्बाद करने की कोशिश में लगे हुए हैं । अगर आप आज इनके चक्कर में नहीं आए तो , कभी न कभी आपके कदम सत्संग - तीर्थयात्रा व धामों की तरफ अपने आप बढ ही जाऐंगे । जरूरत बस आज सावधान रहने की है ।

( गरुण पुराण / नीति सारावली 108 / 26 ) में लिखा है )
त्यज दुर्जन संसर्ग भज साधु समागम् ।
कुरु पुण्य महोरात्रं स्मर नित्य मनित्यताम्।।

अर्थ - दुर्जनों का संग जितनी जल्दी हो सके , छोड दो , और साधु समागम का आश्रय लो ।रात - दिन पुण्य कर्मो में लगे रहो , और संसार की अनित्यता को हमेशा याद रखो । कल्याण हो कर ही रहेगा ।

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