Sunday 2 April 2017

प्रभु में सब पतितन

जय हो मेरे दयालु प्रभु की बार बार में पथ भ्रमित होता हूँ वो बार बार मुझे फिर राह दिखाता हैं
में बार बार वासनाओं के पीछे अंधी दौड़ दौड़ रहा हूँ वो उतनी ही बार पकड़ कर राह दिखाता हैं
न जाने ये खेल कब रुकेगा , कब में उसकी बताई राह पे आगे बढूंगा कब इन कभी भी तृप्त न होने वाली वासनाओं की मृगतृष्णा के अज्ञान से बचुंगा ।
मेरे कारण मेरे ठाकुर को कितना श्रम हो रहा है और मुझे कोई शर्म नहीं आती , .......
प्रभु में सब पतितन को टीको ।
और पतित सब द्योस चार के में तो जन्मन् हीं को।।
बधिक अजामिल गणिका तारी और पुतनाही को ।
मोहि-छांड़ी तुम ओर उद्दारे मिटे शूल कैसे जी को ।।
कोउ न समर्थ शुद्ध करन को खेचीं कहत हों लीको ।
मरियत लाज सूर पतितन में कहत सबे मोहि नीको ।।
राधे राधे

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