Wednesday 15 June 2016

मान-अपमान में सम रहें


🐾याद रखो-मान-अपमान ‘रूप’ का या ‘शरीर’ का होता है और स्तुति-निंदा नाम की होती है; और ये रूप तथा नाम दोनों ही तुम्हारे स्वरुप नहीं है । देह का निर्माण माता के उदर में गर्भकाल में होता है और नाम जन्म के बाद रखा जाता है । नाम बदले भी जाते हैं । अतएव ये रूप और नाम आत्मा के नहीं है । तुम आत्मा हो; इस देहके निर्माण के पहले भी आत्मारूप में तुम थे, देहावसान के बाद भी तुम रहोगे । आत्मा का मान-अपमान और स्तुति-निंदा कोई कर नहीं सकता । अतएव मान-अपमान तथा स्तुति-निंदा से तुम न हर्षित होओ, न उद्विग्न । दोनों को समान समझकर उन्हें ग्रहण मत करो ।
🐾याद रखो -सत्कार-मान और बडाई-स्तुति जितने प्रिय लगते हैं, उतने ही असत्कार-अपमान और निंदा-गाली अप्रिय लगते हैं और उसी के अनुसार राग द्वेष होता है । राग-द्वेष का परिणाम है – आध्यात्मिक दैवी सम्पदा का नाश और भौतिक आसुरी सम्पदा का विकास । जहां आसुरी संपदा का सृजन होने लगता है, वहाँ भाँती-भाँती के पाप, दुष्कर्म, दुःख, क्लेश, संताप आदि का होना-बढ़ना अनिवार्य होता है । यों मानव जीवन दुखों तथा नरकों का अमोघ साधन बन जाता है । तुम जरा ध्यान देकर सोचोगे तो यह प्रत्यक्ष दिखलाई देगा की तुम न देह हो, न नाम हो और यहाँ के मान-अपमान तथा स्तुति-निंदा ही नहीं, लाभ-हानि, जय-पराजय, शुभ-अशुभ, सुख-दुःख, मित्र-शत्रु, जीवन-मृत्यु आदि द्वंद्व केवल देह-नाम या नाम-रूप से ही सम्बन्ध रखते हैं । तुम इनको भगवान की माया मान लो या उनका लीलामय स्वरुप मान लो बस, तुम इनके ऊपर उठ जाओगे

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