भगवान के दर्शन :
एक दिन एक सेठ ने सूफी संत फरीद से कहा, 'मैं घंटों पूजा-पाठ करता हूं, लाखों रुपये दान-पुण्य में खर्च करता हूं। गरीबों को खाना खिलाता हूं, फिर भी मुझे भगवान के दर्शन नहीं होते। आप मार्गदर्शन कीजिए।'
फरीद ने कहा, 'यह तो बहुत आसान है। आओ मेरे साथ। मौका मिला तो आज ही भगवान के दर्शन करा दूंगा।' फरीद सेठ को नदी तट पर ले गए, फिर उन्होंने सेठ को डुबकी लगाने को कहा। जैसे ही सेठ ने डुबकी मारी, फरीद सेठ के ऊपर सवार हो गए। संत फरीद काफी तंदुरुस्त थे। उनका वजन सेठ संभाल नहीं पा रहा था। वह बाहर निकलने की कोशिश करता लेकिन और दब जाता था। सेठ तड़पने लगा। उसने सोचा, अब जान नहीं बचेगी। चले थे भगवान के दर्शन करने, अब यह जिंदगी भी गई। सेठ था तो कमजोर, लेकिन मौत नजदीक देख कर उसने गजब का जोर लगाया और एक झटके में ऊपर आ गया। उसने फरीद से कहा, 'तू फकीर नहीं कसाई है। तू मुझे भगवान के दर्शन कराने लाया था या मारने?'
फरीद ने पूछा, 'यह बताओ कि जब मैं तुम्हें पानी में दबा रहा था तो क्या हुआ?' सेठ बोला, 'होना क्या था। जान निकलने लगी थी। पहले बहुत विचार उठे मन में कि हे, भगवान कैसे बचूं, कैसे निकलूं बाहर। जब प्रयत्न सफल नहीं हुए तो धीरे-धीरे विचार भी खो गए। फिर तो एक ही सवाल आया था कि किसी तरह बाहर निकल जाऊं। फिर विचार भी खो गए, बस भाव रह गया बाहर निकलने का।'
फरीद ने कहा, 'परमात्मा तक पहुंचने का यह अंतिम मार्ग ही सबसे सरल है। जिस दिन केवल परमात्मा को पाने का भाव बचा रह जाएगा और विचार तथा प्रयास खत्म हो जाएंगे, उसी दिन ईश्वर तुम्हें दर्शन दे देंगे। आदमी केवल सोचता है, विचार करता है, सवाल करता है लेकिन उसके भीतर भाव उत्पन्न नहीं होता, इसलिए उसे संपूर्ण सफलता नहीं मिलती।' सेठ ने फरीद का भाव अच्छी तरह समझ लिया।
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एक दिन एक सेठ ने सूफी संत फरीद से कहा, 'मैं घंटों पूजा-पाठ करता हूं, लाखों रुपये दान-पुण्य में खर्च करता हूं। गरीबों को खाना खिलाता हूं, फिर भी मुझे भगवान के दर्शन नहीं होते। आप मार्गदर्शन कीजिए।'
फरीद ने कहा, 'यह तो बहुत आसान है। आओ मेरे साथ। मौका मिला तो आज ही भगवान के दर्शन करा दूंगा।' फरीद सेठ को नदी तट पर ले गए, फिर उन्होंने सेठ को डुबकी लगाने को कहा। जैसे ही सेठ ने डुबकी मारी, फरीद सेठ के ऊपर सवार हो गए। संत फरीद काफी तंदुरुस्त थे। उनका वजन सेठ संभाल नहीं पा रहा था। वह बाहर निकलने की कोशिश करता लेकिन और दब जाता था। सेठ तड़पने लगा। उसने सोचा, अब जान नहीं बचेगी। चले थे भगवान के दर्शन करने, अब यह जिंदगी भी गई। सेठ था तो कमजोर, लेकिन मौत नजदीक देख कर उसने गजब का जोर लगाया और एक झटके में ऊपर आ गया। उसने फरीद से कहा, 'तू फकीर नहीं कसाई है। तू मुझे भगवान के दर्शन कराने लाया था या मारने?'
फरीद ने पूछा, 'यह बताओ कि जब मैं तुम्हें पानी में दबा रहा था तो क्या हुआ?' सेठ बोला, 'होना क्या था। जान निकलने लगी थी। पहले बहुत विचार उठे मन में कि हे, भगवान कैसे बचूं, कैसे निकलूं बाहर। जब प्रयत्न सफल नहीं हुए तो धीरे-धीरे विचार भी खो गए। फिर तो एक ही सवाल आया था कि किसी तरह बाहर निकल जाऊं। फिर विचार भी खो गए, बस भाव रह गया बाहर निकलने का।'
फरीद ने कहा, 'परमात्मा तक पहुंचने का यह अंतिम मार्ग ही सबसे सरल है। जिस दिन केवल परमात्मा को पाने का भाव बचा रह जाएगा और विचार तथा प्रयास खत्म हो जाएंगे, उसी दिन ईश्वर तुम्हें दर्शन दे देंगे। आदमी केवल सोचता है, विचार करता है, सवाल करता है लेकिन उसके भीतर भाव उत्पन्न नहीं होता, इसलिए उसे संपूर्ण सफलता नहीं मिलती।' सेठ ने फरीद का भाव अच्छी तरह समझ लिया।
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