जिस व्यक्ति ने अपनी वाणी को मीठा और हितकर बोलने का आदी बना लिया है , उसका तो सबसे प्रेम होगा ही ।
इसका तो सीधा - सीधा सा मललव ही यह है , कि वह सबमें उसी परमात्मा को देख रहा है।
इसलिए अब कटु बोले तो , किससे ? ।
वरना तो , संसारी लोगों से तो उसे कभी न कभी और कुछ न कुछ कडवा भी तो सुनने को मिलता ही होगा , और यही जीवन की सबसे बडी उपलब्धि भी है ।
क्योंकि रागाद्वेष से ग्रस्त व्यक्ति सच में और सच्ची भक्ति कर ही नहीं सकता ।
भक्त में भक्ति की प्रगाढता की पहचान ही यह है कि , वह अंदर से शांत हो , और प्रेम से लवालव भरा हो ।
प्रेम ही तो भक्ति में सबसे ज्यादा सहायक माना गया है ।
ऐसे व्यक्ति का जीते जी तो लोक, और अंत में परलोक संवर कर ही रहता है ।
ऐसे व्यक्ति की तो सभी शास्त्र मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं ।
इसका तो सीधा - सीधा सा मललव ही यह है , कि वह सबमें उसी परमात्मा को देख रहा है।
इसलिए अब कटु बोले तो , किससे ? ।
वरना तो , संसारी लोगों से तो उसे कभी न कभी और कुछ न कुछ कडवा भी तो सुनने को मिलता ही होगा , और यही जीवन की सबसे बडी उपलब्धि भी है ।
क्योंकि रागाद्वेष से ग्रस्त व्यक्ति सच में और सच्ची भक्ति कर ही नहीं सकता ।
भक्त में भक्ति की प्रगाढता की पहचान ही यह है कि , वह अंदर से शांत हो , और प्रेम से लवालव भरा हो ।
प्रेम ही तो भक्ति में सबसे ज्यादा सहायक माना गया है ।
ऐसे व्यक्ति का जीते जी तो लोक, और अंत में परलोक संवर कर ही रहता है ।
ऐसे व्यक्ति की तो सभी शास्त्र मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं ।
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