Thursday, 8 October 2015

इस संसार मे आने वाला प्रत्येक बालक सम्पूर्णतः संस्कार रहित होता है.

इस संसार मे आने वाला प्रत्येक बालक सम्पूर्णतः संस्कार रहित होता है... उसके अन्तर पर न किसी अच्छे संस्कार के चिन्ह अंकित होते हैं और न ही बुरे संस्कार के... अर्थात जन्म से बालक में न कोई गुण होता है और न ही कोई दोष...

तो ये दोष अथवा गुण किस प्रकार प्राप्त होते हैं? क्या हमने कभी विचार किया है?

जो बात माता-पिता के मुख से निरन्तर सुनी जाती है वही बात उनकी संतानों के ह्दय का संस्कार बनती है। जैसे किसी गाँव में नदी तट तक एक पगडंडी बन जाती है केवल उस मार्ग पर बार-बार चलने के कारण...

अर्थात माता-पिता के ह्दय की इच्छायें... उनकी सन्तानों के ह्दय का दोष अथवा गुण बन कर जन्म लेती हैं!

क्या यह सत्य नही?

पर फिर भी... जब उनकी सन्तानों में दोष दिखाई देता है तो माता-पिता आश्चर्य और दुःख से भर जाते हैं। माता-पिता का ह्दय यह प्रश्न करता है कि उनकी सन्तानों में यह कूर संस्कार आये कहाँ से?

सत्य तो यही है कि माता-पिता अपनी संन्तानों को अन्जाने मे ही कूर संस्कारो के बीज दे देते हैं! जो उनकी सन्तानों की ह्दय भूमि पर कूर संस्कार का वृक्ष बनकर उगता है!

अर्थात अपनी सन्तानों को सू-संस्कारी और धर्ममय बनाने की आशा रखने वाले प्रत्येक माता-पिता को प्रथम अपने ह्दय की इच्छाओं पर अंकुश रखना क्या अनिवार्य नही???

प्रत्येक माता-पिता इस पर विचार अवश्य कीजियेगा!!!
जय श्रीराधेकृष्ण
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