Monday, 12 October 2015

सत्संग के फूल ***

ख़ास बात है – भगवान् पर भरोसा रखें, उन पर निर्भर हो जायँ | समय के सदुपयोग का विशेष ध्यान रखें | हर दम सावधान रहें | साधक वही होता है, जो हरदम सावधान रहता है | संसार के काम में कितनी भी सावधानी रखें, उसमे कमी रहेगी ही | अत: हरदम भगवान् में लगे रहो, उनको पुकारते रहो कि ‘हे नाथ ! आपको भूलूँ नहीं’ और उनके नाम का जप करते रहो | आशा भगवान् की ही रखो | संसार की आशा रखने से दुःख पाना ही पड़ेगा – ‘आशा ही परम दुखम’ | परमात्मा भविष्य की चीज नहीं है | उनकी प्राप्ति वर्तमान की वस्तु है | भविष्य की आशा रखने से धोखा होगा | परमात्मा की प्राप्ति आपको (स्वयं को) होती है, अन्त:करण को नहीं | करण के भरोसे मत रहो | आप भी वर्तमान हैं और परमात्मा भी वर्तमान हैं, फिर देरी क्यों ? उनकी प्राप्ति करण के द्वारा नहीं होती | उसकी प्राप्ति करण ( मन-बुध्दी-इन्द्रियों ) – के त्याग से होती है | प्राणायाम शरीर की शुध्दी के लिये है | अभ्यास से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती |

जिससे जितना लोगे, उसके मरने पर उतना ही दुःख होगा | अत: संसार से लो मत, उसकी सेवा करो | किसी की आशा मत रखो |
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