हम इन्सान अगर हमें सहज ही उपलब्ध , तीन साधनों ( धन - शारीरिक क्षमता और, प्रभु प्रदत्त बुद्धि - विवेक )
का समुचित इस्तेमाल करलें तो , हमारे जीवन के संवर जाने में कहीं कोई शक की , गुंजाइश दूर - दूर तक दिखाई नहीं देती ।
1 - सहजता से उपलब्ध धन , यानी मेहनत व ईमानदारी की कमाई , को विवेक पूर्वक तरीके से खर्च करें तो , अपने दैनिक खर्च करते हुए भी , कुछ न कुछ सत्कर्म करके , पुण्य कमा ही लेंगे , और अगर नहीं भी तो , कम से कम पाप तो खैर नहीं ही बनेंगे ।
2- अपनी शारीरिक क्षमता का , अगर सही उपयोग करलें तो , सेवा - भलाई और परोपकार , न कर पाने का सवाल ही नहीं उठता , क्योंकि इन तीनों में अहम भूमिका शरीर की ही है , और जब ये तीनों हमसे बनेंगे तो , मन की निर्मलता तो अपने आप ही , दिन दूनी बढती जाएगी ,जो कि अंत में , प्रभु चरणों तक पहुंचा कर ही रहेगी ।
( भगवान राम कहते हैं कि, )
निर्मल मन जन , सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल - छिद्र न भावा ।।
3 - और अगर बुद्धि - विवेक का , अपनी भलाई के लिए सही उपयोग करलें तो , सारी बुराइयों से बचे ही रहेंगे , न तो हम कुसंग में पडेंगे , और न हमारे बच्चे , पाप कर्मों में लिप्त होने का तो खैर, सवाल ही नहीं उठता ।
चूँकि पाप करने से डरेंगे सो , लिमिट से अधिक संग्रह भी नहीं होगा , जिसको कि लेकर परिवार में कलह हो , और हम वानप्रस्थ की आयु में चैन से , वानप्रस्थ लेकर मौत की तैयारी , करने की स्थिति में भी आजाऐंगे ,फिर बताइये , अपने कल्याण में संशय कैसा ?।
का समुचित इस्तेमाल करलें तो , हमारे जीवन के संवर जाने में कहीं कोई शक की , गुंजाइश दूर - दूर तक दिखाई नहीं देती ।
1 - सहजता से उपलब्ध धन , यानी मेहनत व ईमानदारी की कमाई , को विवेक पूर्वक तरीके से खर्च करें तो , अपने दैनिक खर्च करते हुए भी , कुछ न कुछ सत्कर्म करके , पुण्य कमा ही लेंगे , और अगर नहीं भी तो , कम से कम पाप तो खैर नहीं ही बनेंगे ।
2- अपनी शारीरिक क्षमता का , अगर सही उपयोग करलें तो , सेवा - भलाई और परोपकार , न कर पाने का सवाल ही नहीं उठता , क्योंकि इन तीनों में अहम भूमिका शरीर की ही है , और जब ये तीनों हमसे बनेंगे तो , मन की निर्मलता तो अपने आप ही , दिन दूनी बढती जाएगी ,जो कि अंत में , प्रभु चरणों तक पहुंचा कर ही रहेगी ।
( भगवान राम कहते हैं कि, )
निर्मल मन जन , सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल - छिद्र न भावा ।।
3 - और अगर बुद्धि - विवेक का , अपनी भलाई के लिए सही उपयोग करलें तो , सारी बुराइयों से बचे ही रहेंगे , न तो हम कुसंग में पडेंगे , और न हमारे बच्चे , पाप कर्मों में लिप्त होने का तो खैर, सवाल ही नहीं उठता ।
चूँकि पाप करने से डरेंगे सो , लिमिट से अधिक संग्रह भी नहीं होगा , जिसको कि लेकर परिवार में कलह हो , और हम वानप्रस्थ की आयु में चैन से , वानप्रस्थ लेकर मौत की तैयारी , करने की स्थिति में भी आजाऐंगे ,फिर बताइये , अपने कल्याण में संशय कैसा ?।
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