Tuesday, 27 October 2015

जो जीव संसार में आया है

यह कितना आश्चर्यजनक है कि,
जो जीव संसार में आया है, वह कितना पढेगा,
शादी होगी या नहीं, बच्चे होंगे या नहीं,
धनवान बनेगा या नहीं, बच्चों से सुख ही मिलेगा,
इस हर वाबत अनिश्चित है,
मगर मरेगा, और कभी भी मर सकता है,
इस वाबत वह विल्कुल अनिश्चय की स्थिति में नहीं है।
फिर भी सभी भक्ति - भजन - सत्संग को कल पर और
कल पर ही टालते जाते हैं।
अब तक सैकडों कोफूँक चुके हैं, और फूँकने की तैयारी में हैं,
लेकिन मुझे भी कल यहीं आना है,
और इनकी तरह खाली ही जाना है,
जानते हुए भी, दिमाग पर जरा भी जोर नहीं देते,
मानो बुध्दि-विवेक को गिरवी रख दिया हो और तो और,
ज्ञानी ध्यानी भी भूले हुए हैं।
बृह्मनिष्ठ - वेदांती , भी कर रहे यह चूक।
जबकि हरि ने वख्श दी, है एक दवा अचूक।।
इन्हें, ये बृह्म को जानते, नहीं देह मैं, इसका भान।
फिर भी संसारी समाँ, जग के प्रति रुझान।।

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