Friday, 9 October 2015

भगवान को ही बांधने की रहती है, भगवान से बंधने की नहीं

हम जीवों की कोशिश केवल भगवान को ही, बांधने की रहती है , भगवान से बंधने की नहीं,
सभी अपनी गेंद भगवान के पाले में ही डाल के रखते हैं , और कहते हैं कि , चूँकि तूने जनम दिया है ,  इसलिए हमारी खुशहाली का जिम्मा भी तेरा ही है ,
जबकि भगवान के प्रतिनिधि यानी सच्चे संत , उन्हें खुशहाली के जो सूत्र बताते हैं ,  उनको कोई अमल में लाना नहीं चाहता , क्योंकि सभी व्यक्ति यह अच्छी तरह जानते हैं कि ,  अगर एक बार भगवान के हो गए तो ,  हमें जो यह उल्टे - सीधे , नैतिक और अनैतिक  काम करने की आदत पडी हुई है , वह छोडनी पडेगी ,
विडम्बना यह है कि , भगवान बंधते तो हैं , परं बंधते हैं सत्कर्मों से , सरलता से , और सहृदयता से,
लेकिन जैसे ही इनकी जिक्र आती है ,  हम भगवान से भगवान के सामने ही यह कह देते हैं कि,
हे प्रभु ! यह तो किताबों में ही अच्छा लगता है ,  हकीकत में ऐसे बनकर जीवन नहीं जिया जा सकता ,
अगर ईमानदारी से व्यवसाय या नौकरी किया तो , बच्चों की पढाई - लिखाई व दवा - दारू तो , बहुत दूर की बात है , खाने के ही लाले पड जाऐंगे ,  इन सद्गुणों का जिम्मा तो दे दो आप , उन सन्तों को , हमें तो आपने गृहस्थी बनाया है सो , हमारी जिम्मेदारी आपकी ,
बिना यह पूछे कि ,  हम आपकी बात मान रहे हैं , या नहीं ,  आपके बताये रास्ते पर चल रहे हैं या नहीं ,  हमारे लिए तो आपको अगर भेदभाव भी करना पडे , तो करिये , संबिधान भी बदलना पडे तो बदलिए ,
नए धर्म शास्त्रों की रचना करनी पडे , तो करिए ,  हमको इससे कोई मतलब नहीं ,
हाँ ! कभी - कभी मंदिर में जाकर घन्टा हिला आया करेंगे,  भगवान भी शायद यह सब सुनकर , मुस्करा ही रह जाते होंगे ।

जय जय श्री राधे 

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