बडे आश्चर्य की बात है कि , संसारी व्यक्ति के पास जब तक धन की , शक्ति की व बुद्धि की सामर्थ्य रूपी पूँजी रहती है , तब उनके पास परोपकार व स्व कल्याण के काम करने का समय नहीं होता , और जब उनके पास समय ही समय होता है , तब अधिकतर व्यक्तियों के पास इन तीनों चीजों का अभाव होता है।
लेकिन जब ये तीनों चीजें नहीं होतीं तब वे परोपकार व स्व कल्यान के काम करने को अत्यधिक उत्सुक दिखाई देते हैं।
लेकिन तब इन तीनों के अभाव में वे दोनों काम करना सम्भव नहीं होता।
सो वे सत्कर्म और अपना कल्यान करने से वंचित रह जाते हैं।
जब ये तीनों थे , तब वे कहते थे कि , बुढापे में करेंगे , लेकिन वे कभी बूढे होते ही नहीं , क्योंकि वे खुद को बूढा मानने को तैयार ही नहीं होते , चाहे साठ के हो जायं , या सत्तर के।
उन्हें अगर कोई उनकी उम्र का ध्यान भी कराए , तो उन्हें बूढा शब्द गाली के समान लगता है , जबकि बुढापा तो वरदान है , क्योंकि इस आयु में काम और कामनाओं का जोर कम जो हो जाता है , और इस देव दुर्लभ मानव देह का एक तरह से अपव्यय सा करता हुआ , हताश - निराश सा सदा - सदा को विदा हो जाता है।
लेकिन जब ये तीनों चीजें नहीं होतीं तब वे परोपकार व स्व कल्यान के काम करने को अत्यधिक उत्सुक दिखाई देते हैं।
लेकिन तब इन तीनों के अभाव में वे दोनों काम करना सम्भव नहीं होता।
सो वे सत्कर्म और अपना कल्यान करने से वंचित रह जाते हैं।
जब ये तीनों थे , तब वे कहते थे कि , बुढापे में करेंगे , लेकिन वे कभी बूढे होते ही नहीं , क्योंकि वे खुद को बूढा मानने को तैयार ही नहीं होते , चाहे साठ के हो जायं , या सत्तर के।
उन्हें अगर कोई उनकी उम्र का ध्यान भी कराए , तो उन्हें बूढा शब्द गाली के समान लगता है , जबकि बुढापा तो वरदान है , क्योंकि इस आयु में काम और कामनाओं का जोर कम जो हो जाता है , और इस देव दुर्लभ मानव देह का एक तरह से अपव्यय सा करता हुआ , हताश - निराश सा सदा - सदा को विदा हो जाता है।
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